उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में दिखाई दे रही है। सोशल मीडिया और कुछ खबरिया मंचों पर आज सुबह से चर्चा जोरों पर है कि भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पद से हटाने का निर्णय ले लिया है। हालांकि पार्टी की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन यह चर्चा राजनीतिक गलियारों में तेज़ी से फैल रही है।
कथित तौर पर, केंद्रीय नेतृत्व और संघ की ओर से योगी आदित्यनाथ की हालिया गतिविधियों और उनके ‘प्रधानमंत्री पद’ की संभावित दावेदारी को लेकर असहमति जताई गई है। वीडियो में यह आरोप भी लगाए गए हैं कि मुख्यमंत्री ने ‘हिंदू सम्राट’ बनने की आकांक्षा में एक सशक्त अपराधी नेटवर्क का सहारा लिया और धार्मिक ध्रुवीकरण को राजनीतिक हथियार बनाया।
वीडियो में यह भी कहा गया कि योगी आदित्यनाथ ने स्वयं को “योगी” घोषित कर अध्यात्म की मूल भावना से भटकते हुए राजनीति में कट्टरता और विभाजनकारी सोच को प्राथमिकता दी। इसके साथ ही आरोप लगाए गए कि उन्होंने जातिगत जनगणना और दलित-ओबीसी नेतृत्व के प्रति उपेक्षा का रवैया अपनाया।
संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश को चार-पांच भागों में विभाजित कर नया राजनीतिक संतुलन तैयार किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि आगामी मुख्यमंत्री ओबीसी, दलित या पिछड़ा वर्ग से हो सकता है, जबकि सवर्ण नेतृत्व को पीछे रखा जाएगा।
हालांकि यह संपूर्ण कथन अभी एकतरफा और अपुष्ट स्रोतों पर आधारित है, लेकिन यदि इनमें से कुछ भी सत्य होता है, तो यह भाजपा और संघ के भीतर बढ़ती वैचारिक खींचतान का संकेत हो सकता है।
योगी आदित्यनाथ की ओर से फिलहाल इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यदि राजनीतिक समीकरणों में ऐसा कोई बड़ा परिवर्तन आता है तो यह उत्तर भारत की राजनीति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।