उज्जैन में अराजकता का अंधकार: ठगी, पेयजल संकट, प्रदूषण और प्रशासनिक उदासीनता पर सवाल

धार्मिक नगरी उज्जैन इन दिनों अपनी आंतरिक व्यवस्थाओं को लेकर बुरी तरह सवालों के घेरे में है। महाकाल की नगरी में अब एक नहीं, कई समस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं — ठगी के बढ़ते मामलों से लेकर पेयजल संकट, प्रदूषण और law & order की बिगड़ती स्थिति तक। शहर की हालत को लेकर नागरिकों में आक्रोश है, लेकिन जिम्मेदार संस्थाओं की चुप्पी भी उतनी ही चौंकाने वाली है।

हाल ही में उज्जैन में एक जिम संचालिका से करीब 90 लाख रुपये की ठगी की घटना सामने आई, वहीं एक अन्य मामले में गुजरात के एक दंपती को नकली आभूषणों की सेल दिखाकर एक करोड़ दस लाख की चपत लगाई गई। ठगी की ये घटनाएं यह संकेत दे रही हैं कि शातिर गिरोह सक्रिय हैं — और चौंकाने वाली बात यह है कि इन गिरोहों के तार शहर के ही लोगों से जुड़े हैं।

पेयजल और प्रदूषण संकट भी विकराल

पेयजल संकट उज्जैनवासियों के लिए रोज की चुनौती बन चुका है। नगर निगम अब जाकर विशेष सम्मेलन आयोजित करने की बात कर रहा है, पर सवाल यह है कि पहले क्या किया गया? शहर में जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। प्रदूषित जलाशयों और खुले में बहते नालों ने हालात को चिंताजनक बना दिया है। नागरिक बीमार हो रहे हैं और अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही है।

अव्यवस्थित सफाई व्यवस्था और बढ़ता अपराध

शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। कचरे के ढेरों, अनियमित सफाई और बदहाल व्यवस्थाओं के चलते बीमारी और असंतोष दोनों बढ़ रहे हैं। दूसरी ओर, अपराध और वसूली गैंगों का आतंक शहर की छवि को धूमिल कर रहा है। सूत्र बताते हैं कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कुछ गिरोह खुलेआम वसूली और गुंडागर्दी कर रहे हैं, और जब पकड़े जाते हैं तो “ऊपर” से फोन आ जाता है और उन्हें छोड़ दिया जाता है।

धार्मिक नगरी या अराजकता पुरी?

घोषणाएं हो रही हैं, योजनाएं बन रही हैं, बजट भी पास हो रहे हैं — लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस काम होता नजर नहीं आ रहा। हालात यह हैं कि शहर के लोग पूछने लगे हैं: क्या महाकाल भी अब उज्जैन से विमुख हो गए हैं? यह कटु टिप्पणी बताती है कि धार्मिकता के नाम पर आडंबर तो खूब हैं, लेकिन सच्ची सेवा, स्वच्छता और ईमानदारी का घोर अभाव है।

बेरोजगारी और हताशा का आलम

मानव मंडी में जुटती बेरोजगारों की भीड़ इस बात की गवाही देती है कि रोज़गार के अवसर ना के बराबर हैं। कुछ युवा खाना साथ लाकर मंडी में दिन गुजारते हैं और शाम को खाली हाथ लौटते हैं। कुछ ने पेट भरने के लिए धार्मिक स्थलों के बाहर का सहारा लेना शुरू कर दिया है।

समाधान की राह: आत्मचिंतन और सच्चा आध्यात्म

इस माहौल में वक्ता ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि शहर को बचाना है तो हर व्यक्ति को आत्ममंथन करना होगा। धर्म का दिखावा छोड़कर, सच्चे सेवा भाव और आध्यात्मिकता को अपनाना होगा। स्वामी विवेकानंद की बात दोहराते हुए उन्होंने कहा — “हमें कट्टर धार्मिक नहीं, कट्टर आध्यात्मिक बनना होगा।”

निष्कर्ष

उज्जैन को महज पर्यटक स्थल बनाने की बजाय, उसे उसकी मूल पहचान — एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नगरी — के रूप में पुनर्स्थापित करना समय की मांग है। इसके लिए जनता को सजग और प्रशासन को जिम्मेदार बनना होगा

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