मध्यप्रदेश की राजनीति इन दिनों गहरे असंतोष और अनगिनत घोटालों की आंच में तप रही है। प्रदेश अब ‘घोटाला प्रदेश’ और ‘कलंकित प्रदेश’ जैसे तमगों से नवाजा जा रहा है। एक ओर जहां भाजपा में अंदरूनी बगावत चरम पर है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक और पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगातार सामने आ रहे हैं।
70 विधायक बगावती मूड में!
भाजपा के करीब 70 विधायक कथित रूप से पार्टी से असंतुष्ट हैं और किसी भी समय बगावत कर सकते हैं। यह दावा खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के बयानों से जुड़ा है। अंदरखाने मचा यह सियासी संग्राम पार्टी नेतृत्व के लिए बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है।
पंचायत स्तर पर करोड़ों के घोटाले
प्रहलाद पटेल ने प्रदेश की पंचायत व्यवस्था पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि सरपंचों, पंचों और पंचायत सचिवों ने मिलकर करोड़ों रुपये के घोटाले किए हैं। सड़क निर्माण, पंचायत भवन, नल-जल योजना और टंकी निर्माण जैसी योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार हुआ है।
शिवराज सिंह पर सीधा आरोप
प्रहलाद पटेल ने इन घोटालों के लिए सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जिम्मेदार ठहराया। सूत्रों की मानें तो भाजपा नेतृत्व शिवराज सिंह की छवि को कमजोर करने की दिशा में भी सक्रिय है, जिससे उन्हें पीएम पद की संभावनाओं से दूर रखा जा सके।
महाकाल मंदिर भी घोटालों से अछूता नहीं
उज्जैन के महाकाल मंदिर जैसे श्रद्धा के केंद्र में भी भ्रष्टाचार की बू मिल रही है। हाल ही में सवा किलो केसर का दान रहस्यमयी रूप से गायब हो गया। इसके अलावा मंदिर के निर्माण कार्यों में भारी गड़बड़ी, झूठे श्रृंगार और दिखावटी धार्मिक आयोजन पर सवाल उठ रहे हैं।
उज्जैन: धार्मिक नगरी या भ्रष्टाचार का केंद्र?
शहर में पेयजल संकट की आड़ में राजनीति हो रही है। गंभीर डैम का दूसरा चरण अब भी अधर में है। वहीं पुराने घाटों को नष्ट कर नए निर्माण कार्यों में भारी राशि झोंकी जा रही है। शिप्रा नदी के गोमुख से लेकर घाटों तक अतिक्रमण और प्रदूषण पर कोई ठोस कार्य योजना नहीं दिख रही।
संघ से भी सवाल
मोहन भागवत को खुले तौर पर संबोधित करते हुए वक्ता ने कहा कि अब संघ को भी आंखें खोलनी होंगी। उन्होंने संघ नेताओं पर दलाली तक के आरोप लगाए और कहा कि अब देश को सिर्फ धार्मिक दिखावों से निकालकर वास्तविक सनातन मूल्यों और विकास की ओर ले जाने की जरूरत है।
निष्कर्ष:
मध्यप्रदेश और विशेष रूप से उज्जैन अब एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां जनता का विश्वास डगमगाने लगा है। जब धर्मस्थल भी भ्रष्टाचार की चपेट में आएं, जब हर पदाधिकारी संदेह के घेरे में हो और जब सत्ता में ही असंतोष फूटने लगे, तो यह संकेत है कि अब गहराई से सोचने और मूलभूत सुधार की आवश्यकता है।