मध्य प्रदेश में भाजपा के भीतर भारी असंतोष और संभावित बगावत की आहट ने प्रदेश की राजनीति को गरमा दिया है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भाजपा के 50 से अधिक विधायक सरकार से नाराज होकर खुली बगावत की तैयारी में हैं। यह असंतोष केवल व्यक्तिगत उपेक्षा या राजनीतिक समीकरणों तक सीमित नहीं, बल्कि सत्ता और संगठन के भीतर गहरे अंतर्विरोधों का परिणाम बताया जा रहा है।
विधायकों की नाराज़गी के प्रमुख कारण
भाजपा विधायकों का आरोप है कि प्रशासनिक अमला उनकी उपेक्षा कर रहा है और अफसरशाही बेलगाम हो गई है। कई नेताओं ने यह तक कहा कि “हमारे साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं हो रहा”, जिससे उनकी राजनीतिक साख और जनसेवा में बाधा आ रही है। नाराज विधायकों का कहना है कि वे अब सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करेंगे।
वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी से असंतोष
सूत्रों के अनुसार, प्रह्लाद पटेल, गोपाल भार्गव, देवेंद्र पटेल सहित कई वरिष्ठ नेता लंबे समय से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इसी क्रम में पंचायत मंत्री प्रह्लाद पटेल द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए, जिसमें पंचायतों में भारी भ्रष्टाचार की बात कही गई है।
सिंधिया खेमे की नाराजगी
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायक भी नाराज हैं। उनका आरोप है कि उन्हें भाजपा में दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि यह खेमा भी बगावत की ओर बढ़ सकता है।
संघ और संगठन में भी दरारें
वीडियो में यह भी दावा किया गया कि संघ के कई नेता मौजूदा नेतृत्व से असहमत हैं और भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं भी चल रही हैं। नितिन गडकरी को आगे लाने की बात सामने आ रही है, जिससे भाजपा के अंदर की खींचतान और स्पष्ट हो जाती है।
संभावित राजनीतिक समीकरण
यदि 70 से 90 विधायक भाजपा से अलग होते हैं और कांग्रेस (66 विधायक), कुछ निर्दलीय और अन्य दलों के साथ गठबंधन करते हैं, तो भाजपा सरकार का गिरना तय माना जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में “लोकप्रिय सरकार” के गठन की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
भाजपा कार्यकर्ताओं में भी असंतोष
भाजपा के कई जमीनी कार्यकर्ता भी नाराज हैं। उनका कहना है कि “हमने सरकार बनाने में मेहनत की लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही”। इस कारण संगठन में निचले स्तर पर भी भारी असंतोष व्याप्त है।
आगे क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि पार्टी नेतृत्व समय रहते संकट को नहीं संभाल पाया, तो मध्य प्रदेश की राजनीति एक बार फिर बड़े बदलाव के दौर में प्रवेश कर सकती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की स्थिति भी अस्थिर मानी जा रही है।
निष्कर्ष:
भाजपा के भीतर मची यह उठापटक आने वाले दिनों में राज्य की सत्ता का समीकरण पूरी तरह से बदल सकती है। अब देखना यह होगा कि पार्टी नेतृत्व इस आंतरिक संकट से कैसे निपटता है और क्या मध्य प्रदेश में एक नया राजनीतिक अध्याय शुरू होने वाला है?