राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भारत के मंच पर, मध्यप्रदेश की पुण्यभूमि उज्जैन ने एक ऐतिहासिक क्षण को साक्षी बनाया जब सुप्रसिद्ध समाजसेवी व विचारक डॉ. दास एच. परिहार को ‘राष्ट्र रत्न’ सम्मान से अलंकृत किया गया। यह सम्मान स्वयं मान्यवर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शत्रुघ्न प्रसाद जी के कर-कमलों से प्रदान किया गया।
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इस गरिमामयी मंच पर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शत्रुघ्न प्रसाद, दैनिक सामना भोपाल के वरिष्ठ संपादक श्री अनिल तिवारी, राष्ट्रीय संगठन चिकित्सासंघ बिहार के श्री आलोक तिवारी, मुंबई के फिल्म निर्देशक श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़, स्काई टीवी भोपाल के श्री अनिल उपाध्याय, फिल्म जगत से श्रीमती फराह खान सहित अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने अपने विचार साझा किए।
सम्मान समारोह के दौरान श्री सिन्हा ने भावुक शब्दों में कहा—
“डॉ. परिहार जैसी विभूतियाँ अमृत कल्याणी रूप से समाज में उदित होती हैं। यह हम सभी का सौभाग्य है कि हम इन्हें राष्ट्ररत्न सम्मान देकर गौरवांवित हो रहे हैं। आप चिरंजीवी रहें और आपके कल्याणकारी विचार समाज की जीवन यात्रा को अलौकिक बनाते रहें। हमारा सेवामन स्वीकारें और हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करें।”
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इस गरिमामयी अवसर पर एक और गौरव की अनुभूति उस समय हुई जब फिल्म ‘थारो मारो प्रेम’ के निर्देशक श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ द्वारा डॉ. परिहार को ‘जनसेवा सम्मान’ से भी नवाजा गया।
यह संपूर्ण आयोजन उज्जैन की संत-परंपरा, संस्कृति और सेवा भाव की आत्मा को समर्पित था। उपस्थित जनसमुदाय और गणमान्यजनों ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से डॉ. परिहार के योगदान को नमन किया।
आज का दिन न केवल डॉ. परिहार के सम्मान का दिवस था, बल्कि उन मूल्यों और विचारों के पुनर्स्मरण का अवसर भी, जो राष्ट्र को नई दिशा दे सकते हैं।
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सम्पादकीय रघुवीर सिंह पंवार दुवारा समीक्षा
राष्ट्ररत्न सम्मान से विभूषित डॉ. दास एच. परिहार : उज्जैन की पुण्य भूमि पर गूंजे राष्ट्र सेवा के जयघोष
उज्जैन | विशेष संवाददाता (रघुवीर सिंह पंवार )
कभी-कभी कोई क्षण इतिहास में अमिट बन जाता है। ऐसा ही एक क्षण उज्जैन की पुण्यभूमि पर उस समय अंकित हुआ जब समाजसेवा, विचारशीलता और मानवीय मूल्यों के प्रतिरूप डॉ. दास एच. परिहार को ‘राष्ट्ररत्न’ की गरिमामयी उपाधि से अलंकृत किया गया।
यह सम्मान कोई साधारण उपाधि नहीं, बल्कि उस तपस्या, उस समर्पण और उस जीवन दृष्टि की स्वीकृति है जो डॉ. परिहार ने समाज के हर वर्ग के उत्थान हेतु जिया है।
यह सम्मान उन्हें ‘राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भारत ’ के मंच पर, स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शत्रुघ्न प्रसाद द्वारा प्रदान किया गया। मंच भव्य था, परंतु उससे कहीं अधिक दिव्यता उस भाव में थी, जब श्री शत्रुघ्न प्रसाद ने यह कहते हुए राष्ट्ररत्न की उपाधि दी—
“आप जैसी विभूतियाँ अमृत कल्याणी रूप से इस धरती पर उदित होती हैं। यह समाज और राष्ट्र का सौभाग्य है कि हमें आपके विचारों और कर्मों से प्रेरणा मिलती है। आपको राष्ट्ररत्न सम्मान से सम्मानित कर हम हर्षित ही नहीं, गौरवान्वित भी हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि आप चिरायु हों, और आपके कल्याणकारी विचार समस्त जनजीवन की यात्रा को अलौकिक व सार्थक बनाते रहें।”
उनके इन शब्दों ने सभागार को भावविभोर कर दिया। तालियों की गूंज के बीच एक मौन स्वीकारोक्ति थी— कि डॉ. परिहार जैसे व्यक्तित्व युगों में एक बार ही जन्म लेते हैं।
फिल्मी दुनिया ने भी दिया मान – ‘जन सेवा सम्मान‘ से सम्मानित
इस गौरवमयी अवसर पर डॉ. परिहार को एक और प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ। चर्चित फिल्म ‘थारो मारो प्रेम’ के निर्देशक श्री राजेन्द्र राठौड़ ने उन्हें ‘जनसेवा सम्मान’ प्रदान कर सृजन और सेवा के संगम को नई दिशा दी। यह सम्मान इस बात का प्रतीक है कि जनहित के कार्य केवल मंचों या मोर्चों तक सीमित नहीं, बल्कि कला, साहित्य और सिनेमा भी जब समाज सेवा के साथ जुड़ते हैं, तब एक नई संस्कृति का जन्म होता है।
उज्जैन बना गवाह, समय ठहर-सा गया
शिप्रा के तट पर बसी, कालचक्र की राजधानी उज्जैन उस दिन साक्षी बनी एक ऐसे क्षण की, जहाँ केवल सम्मान नहीं दिया गया, बल्कि मूल्यों का उत्सव मनाया गया।
राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भारत का यह मंच किसी संस्था का नहीं, बल्कि एक चेतना का मंच था— जहाँ पत्रकारिता, साहित्य, सिनेमा, समाजसेवा और राष्ट्रभक्ति, सब एक साथ एकत्र हुए।
इस मंच से मिले संदेश स्पष्ट थे—
सेवा ही धर्म है, विचार ही जीवन है, और समर्पण ही सफलता।
डॉ. परिहार की सादगी, उनकी गहरी दृष्टि और उनके मानवीय सरोकार हर दिल को छू गए। उनका व्यक्तित्व किसी भाषण से नहीं, बल्कि उनके मौन से भी प्रेरणा देता है।
आशिष रूपी आह्वान
अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में डॉ. परिहार ने जो भाव प्रकट किए, वे कम बोले गए, परंतु गहरे उतर गए। उन्होंने कहा—
“यह सम्मान मेरा नहीं, उस हर हाथ का है जो समाज के लिए जुड़ता है, उस हर आंख का है जो पीड़ा देखती है, और उस हर दिल का है जो किसी के लिए धड़कता है। मैं केवल माध्यम हूं, कृपा आप सभी की है।”
समाप्ति नहीं, आरंभ का क्षण
यह आयोजन केवल एक सम्मान समारोह नहीं था, यह उस युग की दस्तक थी, जहाँ नायक मंचों पर नहीं, समाज के बीच खड़े होते हैं।
डॉ. परिहार जैसे व्यक्तित्व हमें याद दिलाते हैं कि जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं, दूसरों के जीवन को बेहतर बनाना भी है।
आज जब मूल्य विखंडित हो रहे हैं, ऐसे में यह समारोह, यह सम्मान, यह संदेश — एक नई सुबह की आहट हैं।
डॉ. परिहार को राष्ट्ररत्न की उपाधि से सम्मानित करना, वस्तुतः राष्ट्र को ही सम्मानित करना है।