मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर विवाद: न्यायिक निगरानी अनिवार्य?

नई दिल्ली, 19 फरवरी: मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईओ) की नियुक्ति को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आज यानी 19 फरवरी को सीईओ की नियुक्ति होनी थी, लेकिन सरकार ने पहले ही 17 फरवरी को इसकी घोषणा कर दी, जिससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

क्या यह नियुक्ति वैध?
नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह निर्णय संविधान और लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप है? कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह नियुक्ति विवादित है क्योंकि दो-एक के बहुमत के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया को स्वीकृति दी गई, जबकि इससे पहले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) इस प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा होते थे।

नए कानून पर आपत्ति
सरकार द्वारा हाल ही में किए गए संशोधन के तहत, सीजेआई को नियुक्ति समिति से हटा दिया गया। यह संशोधन उस समय लाया गया जब संसद में कई सांसद निलंबित थे, जिससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली
आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन सॉलिसिटर जनरल ने अन्य संवैधानिक मामलों में व्यस्तता का हवाला देते हुए सुनवाई को टलवाने की मांग की। अब शीर्ष अदालत आने वाले दिनों में इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर सुनेगी।

वैकल्पिक नियुक्ति की संभावना
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने पहले ही इस विवाद की आशंका को भांप लिया था, इसीलिए विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। यदि सुप्रीम कोर्ट ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति को अवैध ठहराता है, तो सरकार विवेक जोशी को मुख्य चुनाव आयुक्त बना सकती है।

लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव आयोग आवश्यक
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर विपक्षी दलों और लोकतंत्र समर्थकों ने चिंता जताई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नियुक्ति प्रक्रिया में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश—तीनों की समान भागीदारी आवश्यक है, ताकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता बनी रहे।

अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेता है और इससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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