देशभर के 15 लाख अधिवक्ताओं ने सरकार द्वारा प्रस्तावित एडवोकेट संशोधन बिल के खिलाफ आवाज उठाई है। यह बिल वकीलों के अधिकारों और बार काउंसिल की स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है, जिससे अधिवक्ताओं में नाराजगी है।
क्या है विवाद?
सरकार द्वारा पेश किए गए इस विधेयक में बार काउंसिल को सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया गया है। इसका सीधा अर्थ यह निकाला जा रहा है कि अधिवक्ताओं की स्वायत्तता खतरे में है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह कानून संविधान की आत्मा के खिलाफ है और इससे न्यायपालिका पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा।
विरोध की लहर
अधिवक्ता समुदाय इस बिल को “काला कानून” बताते हुए इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। देशभर में प्रदर्शन जारी हैं और वकील सड़कों पर उतरकर सरकार से इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस बिल पर आपत्ति जताई है, जो दर्शाता है कि इस मुद्दे पर कानूनी जगत में असहमति बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कानून से अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता बाधित होगी और न्यायिक व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सरकार का पक्ष
सरकार का कहना है कि इस बिल का उद्देश्य कानूनी सुधार करना है, लेकिन अधिवक्ताओं को लगता है कि यह कानूनी तानाशाही की ओर बढ़ता कदम है।
आगे क्या?
अधिवक्ताओं की मांग है कि सरकार इस बिल को वापस ले या इसमें जरूरी संशोधन करे। यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज हो सकता है।
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