पंचकोशी यात्रा: उज्जैन की आस्था, परंपरा और मोक्ष की परिक्रमा

चकोशी यात्रा : उज्जैन की धर्म, संस्कृति और आत्मशुद्धि का महासंगम
, उज्जैन (रघुवीर सिंह पंवार )

भारत की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी सदियों से आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रही है। यहाँ की गलियों में गूंजती शिव आराधना, मंदिरों में लहराते दीप और आस्था से झुके मस्तक, यह सब मिलकर एक ऐसे वातावरण का निर्माण करते हैं, जहाँ मनुष्य अपने सांसारिक बंधनों को त्यागकर परमात्मा की ओर अग्रसर होता है। इसी आध्यात्मिक वातावरण की अनूठी अभिव्यक्ति है — पंचकोशी यात्रा, जो हर वर्ष वैशाख माह में लाखों श्रद्धालुओं को एक तपस्वी, भक्त और सेवक के रूप में रूपांतरित कर देती है।

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उज्जैन की आत्मा: पंचकोशी परिक्रमा

उज्जैन, जिसे प्राचीनकाल में अवंतिका, उज्जयिनी और कुशस्थली के नाम से जाना गया, न केवल ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की धार्मिक परंपराएं, संस्कार और लोक आस्था भी इसे विशिष्ट बनाते हैं। इन्हीं परंपराओं में पंचकोशी यात्रा का स्थान सर्वोपरि है। ‘पंचकोशी’ अर्थात पाँच कोस – यह यात्रा उज्जैन के चारों ओर स्थित पाँच पवित्र स्थलों की परिक्रमा है, जिसकी कुल दूरी लगभग 118 किलोमीटर है और यह पाँच दिनों में सम्पन्न होती है।

यात्रा का प्रारंभ: संकल्प से साधना तक

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इस यात्रा की शुरुआत होती है महाकाल वन क्षेत्र में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर से, जहाँ श्रद्धालु नारियल अर्पण कर यात्रा की निर्विघ्न पूर्णता का संकल्प लेते हैं। प्रथम दिन का पड़ाव है पिंगलेश्वर, जहाँ का वातावरण श्रद्धालुओं को आत्मनिरीक्षण और ध्यान की ओर प्रेरित करता है। यहाँ के शांत वातावरण में साधक अपने भीतर झाँकता है और नकारात्मक विचारों से मुक्त होने की साधना करता है।

इसके बाद क्रमशः कायावरोहणेश्वर, बिलकेश्वर (अंबोदिया), दुर्धरेश्वर (जैथल) और नीलकंठेश्वर (उंडासा) प्रमुख पड़ाव आते हैं। हर एक स्थल का अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, जो इस यात्रा को केवल एक शारीरिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक तप में परिवर्तित कर देता है।

तप, त्याग और तीर्थ की त्रिवेणी

पंचकोशी यात्रा का स्वरूप केवल दर्शन-पूजन तक सीमित नहीं है। यह यात्रा शरीर की सहनशक्ति, मन की दृढ़ता और आत्मा की पवित्रता की परीक्षा है। नंगे पांव चलना, मौन व्रत रखना, माला-जप करना, इन सभी क्रियाओं के माध्यम से श्रद्धालु स्वयं को तपस्वी की भांति अनुभव करता है। कई श्रद्धालु इस यात्रा को परिवार की सुख-शांति, समाज की भलाई, और व्यक्तिगत मोक्ष की भावना के साथ पूरी करते हैं।

सामूहिक साधना: सेवा और समर्पण का उदाहरण

इस यात्रा का एक विशेष पक्ष है – इसका सामूहिक स्वरूप। प्रशासन, सामाजिक संगठन और हजारों स्वयंसेवक मिलकर इसे एक धार्मिक उत्सव में बदल देते हैं। हर पड़ाव पर पेयजल, भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, रात्री विश्राम और सुरक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाती है। इस वर्ष यात्रा को प्लास्टिक मुक्त और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।

प्रत्येक रात्रि पड़ाव पर धार्मिक मंच, कीर्तन, रामधुन और सांस्कृतिक कार्यक्रम श्रद्धालुओं को भक्तिरस में सराबोर कर देते हैं।

उज्जैन की पहचान, आस्था का प्रमाण

पंचकोशी यात्रा केवल एक पर्व नहीं, यह उज्जैन की आत्मा का उत्सव है। यह उस परंपरा की गूँज है जो श्रद्धा, अनुशासन और सेवा के मूल्यों पर आधारित है। 2025 की यह यात्रा भी उसी परंपरा का भाग है, जहाँ हर कदम पर भक्ति की ध्वनि और सेवा की भावना झलकती है।

जब लाखों लोग एक ही उद्देश्य, एक ही आस्था और एक ही मार्ग पर अग्रसर होते हैं, तब यह यात्रा केवल ‘परिक्रमा’ नहीं रहती – यह बन जाती है एक जीवंत साधना, एक चलती फिरती तपशाला और साक्षात धर्म का उत्सव

उज्जैन की पंचकोशी यात्रा – जहाँ कदम चलते हैं मोक्ष की ओर, और हृदय भर उठता है शिवभक्ति के अमृत से।

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