(रघुवीर सिंह पंवार ): केंद्रीय बजट 2025 में मिडिल क्लास को इनकम टैक्स में बड़ी राहत दी गई है। अब 12 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। सरकार का दावा है कि इससे लाखों लोगों को फायदा होगा, लेकिन क्या यह राहत मिडिल क्लास की आर्थिक समस्याओं का समाधान कर पाएगी?
टैक्स स्लैब में बड़ा बदलाव
नए टैक्स स्लैब के अनुसार:
- 0 – 4 लाख: कोई टैक्स नहीं
- 4 – 8 लाख: 5% टैक्स
- 8 – 12 लाख: 10% टैक्स
- 12 – 16 लाख: 15% टैक्स
- 16 – 20 लाख: 20% टैक्स
- 20 – 24 लाख: 25% टैक्स
- 24 लाख से अधिक: 30% टैक्स
सरकार का कहना है कि 12 लाख तक की आमदनी वालों को 80,000 रुपये तक का फायदा होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह राहत महंगाई और बढ़ती लागत के सामने पर्याप्त है?
क्या इस राहत से आम आदमी खुश होगा?
भारत में मिडिल क्लास पहले से ही महंगाई, जीएसटी और कम सैलरी के बोझ तले दबा हुआ है। टैक्स में राहत तो मिली, लेकिन क्या यह उन खर्चों की भरपाई कर पाएगी जो रोजमर्रा की जिंदगी को महंगा बना रहे हैं?
- जीएसटी का दबाव: खाने-पीने से लेकर बिजली और स्कूल फीस तक, हर चीज पर जीएसटी लगा हुआ है। टैक्स में छूट से जो पैसे बचेंगे, वे महंगाई में ही खर्च हो जाएंगे।
- सैलरी नहीं बढ़ रही: ज्यादातर लोगों की आय महंगाई की दर से नहीं बढ़ रही, ऐसे में यह टैक्स छूट कितनी कारगर होगी?
- बेरोजगारी का मुद्दा: टैक्स में राहत तो दी गई, लेकिन नए रोजगार के अवसर नहीं बढ़े।
कॉरपोरेट को राहत, लेकिन निवेश नहीं बढ़ा
सरकार ने 2024 में कॉरपोरेट टैक्स को 40% से घटाकर 35% किया था ताकि कंपनियां निवेश करें, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि विदेशी निवेश कम हुआ और रोजगार नहीं बढ़ा। सवाल उठता है कि जब कॉरपोरेट टैक्स घटाने से फायदा नहीं हुआ तो क्या मिडिल क्लास को थोड़ी राहत देने से अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव आएगा?
मिडिल क्लास की असली समस्या क्या है?
रात 9:30 बजे कोलकाता के रेलवे स्टेशन पर अपने घरों को लौटते लोग हों या मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करने वाले कामकाजी नागरिक—इनके लिए असली समस्या सिर्फ इनकम टैक्स नहीं, बल्कि बढ़ती महंगाई, जीएसटी और कम वेतन है।
सरकार का दावा है कि यह “जनता का बजट” है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या मिडिल क्लास को वाकई राहत मिली या सिर्फ आंकड़ों का खेल खेला गया?