दिल्ली में ‘आप’ की हार: नई राजनीति की आंधी शांत, लेकिन अंत नहीं!

दिल्ली में ‘आप’ की हार: नई राजनीति की आंधी शांत, लेकिन अंत नहीं!

उज्जैन (रघुवीर सिंह पंवार )। जिस दिल्ली से आम आदमी पार्टी (AAP) ने नई राजनीति की आंधी उठाई थी, वही आंधी अब शांत हो गई है। हमने इसे ‘शांत’ कहा, ‘अंत’ नहीं, क्योंकि राजनीति में किसी भी चीज़ का अंतिम फैसला नहीं होता।

1993 के बाद लगातार कई चुनाव हारने वाली भाजपा (BJP) ने इस बार दिल्ली में बड़ी जीत दर्ज की है। पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक इस जीत से गदगद हैं। लेकिन AAP की हार से सिर्फ भाजपा ही खुश नहीं है—कांग्रेस भी है, और वे भी हैं जो भाजपा के खिलाफ विभिन्न दलों के साथ खड़े होते थे।

यह भाजपा की पहली ऐसी जीत है जिसने उसके विरोधियों को भी राहत दी है। लेकिन यह जीत आसान नहीं थी—इसके लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी।

दिल्ली की राजनीति में बदलाव
2008 में कांग्रेस का वोट शेयर 40% से अधिक था, लेकिन अब वह दो अंकों में भी नहीं दिखती। इसके बावजूद, भाजपा का वोट शेयर 2013 में भी 33% से ज्यादा था, लेकिन उसे कम सीटें मिली थीं। 2015 के बाद से भाजपा का वोट लगातार बढ़ता गया है।

AAP की हार के कारण?
क्या यह सिर्फ सरकार के कामकाज के खिलाफ जनता की नाराजगी थी? या फिर इसमें विचारधारा का भी कोई बड़ा रोल था? क्या भाजपा की रणनीति ज्यादा प्रभावी रही? इन सवालों पर आगे चर्चा करेंगे।

दिल्ली की यह हार AAP के लिए एक सबक भी हो सकती है और उसकी राजनीति की नई दिशा तय कर सकती है। क्या AAP इससे उबर पाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा।दिल्ली में 27 साल बाद बीजेपी की वापसी: नई सियासी तस्वीर!

27 साल बाद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की वापसी हो रही है। यह पार्टी के लिए एक बड़ा सियासी लम्हा है।

2014 में जब मोदी लहर थी, तब भी 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने BJP को नकार दिया था। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन 2020 में आम आदमी पार्टी (AAP) ने उसे करारी शिकस्त दी।

दिल्ली में इस बार की जीत BJP के लिए खास है, क्योंकि 2015 में उसे सिर्फ 3 और 2020 में 8 सीटें मिली थीं। इस बार उसके वोट प्रतिशत में करीब 7% की बढ़ोतरी हुई, जबकि AAP का वोट शेयर करीब 10% गिर गया।

AAP की हार और बीजेपी की रणनीति
दिल्ली में BJP की सत्ता में वापसी 2013 के बाद पहली बार राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार बनाएगी। इससे पहले यूपीए सरकार के समय केंद्र और दिल्ली में एक ही पार्टी थी, अब वही स्थिति BJP के साथ बन गई है।

दिल्ली की इस जीत में BJP को हर तरह की सीटों पर सफलता मिली है। 2013 में उसका वोट शेयर 33% था, 2015 में मामूली गिरावट हुई, लेकिन उसने अपना एक तिहाई वोट बैंक हमेशा बनाए रखा।

अब सवाल उठता है—क्या यह जीत 2024 के लोकसभा चुनावों पर असर डालेगी? क्या आम आदमी पार्टी इस हार से उबर पाएगी? आने वाले दिनों में दिल्ली की सियासत में क्या नए बदलाव होंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।दिल्ली में AAP की ऐतिहासिक हार, बीजेपी की जबरदस्त वापसी!

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) को करारा झटका लगा है। अरविंद केजरीवाल खुद अपनी परंपरागत नई दिल्ली सीट से चुनाव हार गए, जहां से उन्होंने कभी शीला दीक्षित को हराकर राजनीति में हलचल मचा दी थी। इस बार उन्हें बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने मात दी।

AAP के दिग्गज नेता मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन भी चुनाव हार गए, जिससे पार्टी को गहरा झटका लगा है। केवल आतिशी सिंह ने अपनी सीट बचाई, लेकिन अब उनकी जीत का राजनीतिक मायने कम हो गया है।

BJP की बढ़त और AAP की रणनीतिक गलतियां

बीजेपी ने इस बार 38% से अधिक वोट शेयर हासिल किया, जिससे उसकी जीत का रास्ता साफ हुआ। दूसरी ओर, AAP पहले ही हार की आशंका से घिरी थी। केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया, और आतिशी को सीएम बना दिया। यह फैसला कितना सही था, इस पर अब सवाल उठ रहे हैं।

AAP ने चुनाव से पहले 20 से ज्यादा विधायकों के टिकट बदले, लेकिन यह फैसला कारगर नहीं साबित हुआ। जनता की नाराजगी सरकार के कामकाज से ज्यादा पार्टी की कार्यप्रणाली से जुड़ी दिखी।

क्या यह AAP के लिए अंत की शुरुआत?

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह BJP की जीत कम, बल्कि केजरीवाल की हार ज्यादा है। लोगों ने AAP से परेशान होकर उसे हराया।

अब सवाल उठता है—क्या AAP इस हार से उबर पाएगी? या यह उसकी राजनीति के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा? आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिलेगा।

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