बेहद कड़वी बाते[९-६-२०२३] हम स्वार्थ में अंधे होकर , अपनी आत्मा तक को धृतराष्ट्र बना बेठे हें= विश्व गुरु भारत का बहुआयामी पतन, अपराधी हम सब= देश में शातिर घोटाले, राष्ट्रवाद , राष्ट्रीयता , सामाजिकता और धर्म तथा संस्कार बन गया= हम, अपने आत्म देव तक को धृतराष्ट्र बना बेठे और कुकृत्य को, अपना शोर्य जता रहे= सत्य अब अपराध बन गया , झूठ , जुमले तथा शाब्दिक लफ्फाजी, जीवन यात्रा लक्ष्य हो गया= शातिर घोटाले भी राष्ट्रवाद , राष्ट्रीय तथा सामाजिक चरित्र हो गये= राख के ढेर तथा मिट्टी में मिलना तय हें , ये घोटाले भी नहीं बचा पायेगें=एक महा कल्पांत जरुरी हें, धरती पर= आदमी, अब इंसान नहीं रहा , सर्व भक्षी शातिर तथा चालाक देत्य हो गया[ नारायण- नारायण]