आज हम उज्जैन की अराजकता और महाकाल मंदिर से जुड़े कई मुद्दों पर बात करेंगे। महाकाल मंदिर, जो कभी पवित्रता का प्रतीक था, अब धन-खोरी का केंद्र बन चुका है। हमारे सर्वे के अनुसार, यहां 1200 से 1500 लोग इस काले धंधे में शामिल हैं। फूल बेचने से लेकर मंदिर के अंदर के अफसरों तक सभी इस व्यवसाय में शामिल हैं। मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए यह माहौल बहुत निराशाजनक है, जिससे लोग संकल्प करते हैं कि अब वे यहां कभी दर्शन के लिए नहीं आएंगे।
इसके अलावा, शिप्रा नदी का पानी भी डी कैटेगरी का पाया गया है, जो न तो पीने के योग्य है और न ही स्नान के लिए। बावजूद इसके, यहां के नेता इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। शिप्रा के पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए करोड़ों रुपये मंजूर हो चुके हैं, लेकिन ये पैसे कहां जाते हैं, इसका किसी को कुछ पता नहीं है।
हम उज्जैन की यातायात व्यवस्था की बात करें तो यह भी बहुत खराब है। यहां दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है और ट्रैफिक पुलिस का ध्यान केवल चालान तक ही सीमित है, जबकि सड़क पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा, हालात ये हैं कि यहां के कुछ मंदिरों में भगवान की दुकानें खुल गई हैं। लोग भगवान के नाम पर पैसा कमाने का काम कर रहे हैं और भक्तों से धोखाधड़ी हो रही है।
अब, जो मंदिरों में भक्ति का प्रचार किया जा रहा है, वहां भी हर चीज़ में मिलावट की जा रही है। भगवान के प्रसाद में भी छेड़छाड़ हो रही है, और भक्तों को सही भोग नहीं दिया जा रहा। यह सब देखकर यह कहना ही सही होगा कि धर्म के नाम पर शोषण हो रहा है और आस्था का माखौल उड़ाया जा रहा है।
अंत में, हमें यह समझना होगा कि धर्म और आस्था की सच्ची रक्षा तब ही हो सकती है जब हम अपने कर्मों को सुधारें और समाज में ईमानदारी और मानवता की भावना को बढ़ावा दें। अगर हम अपने व्यक्तिगत जीवन में सादगी और संयम बनाए रखें, तो सनातन धर्म की रक्षा संभव हो सकती है।
ग्राउंड रिपोर्ट: मुकेश लसकri
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