अब दिव्यता को भव्यता के साथ महसूस कीजिए

महा शिवरात्रि पर विशेष महाकाल लोक”

अरविन्द श्रीधर,

अनादि नगरी अवंतिका की गणना सनातन परंपरा की पवित्र मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में होती है.

अयोध्या मथुरा माया काशी कांञ्ची अवन्तिका।

पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः।।

प्राचीन भारत के इतिहास में जिन 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है,अवंती जनपद का उनमें प्रमुख स्थान रहा है. ब्रह्मपुराण,अग्निपुराण,गरूड़पुराण, शिवपुराण, लिंगपुराण, मत्स्यपुराण,भागवतपुराण,विष्णुपुराण, भविष्यपुराण आदि में उज्जयिनी का पर्याप्त उल्लेख मिलता है।स्कंद पुराण का अवंतिखंड तो है ही इस प्राचीन तीर्थ नगरी की दिव्यता को समर्पित.

अवंतिका,उज्जयिनी,विशाला,पद्मावती, कुमुदवती, अमरावती, कनकश्रंगा,कुशस्थली के साथ ही इस प्राचीन नगर का एक नाम प्रतिकल्पा भी है. वह इसलिए क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार यह अनादि नगरी प्रत्येक कल्प में अपने मूल स्वरूप में ही स्थित रहती है…फिर जिस नगरी में कालों के काल महाकाल स्वयं विराजित हों, प्रलय उसका क्या बिगाड़ सकता है?

उज्जयिनी में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के प्राकट्य के संबंध में पौराणिक मान्यता है कि.

पुरा त्वेकार्णवे प्राप्ते नष्टे स्थावरजंगमे।

नाग्निर्न वायुरादित्यो न भूमिर्न दिशो नभ:।।

न नक्षत्राणि न ज्योतिर्न द्यौर्नेन्दु्र्ग्रहास्तथा।

न देवासुरगंधर्वा: पिशाचोरगराक्षसा:।।

सरांसि नैव गिरयो नापगा नाब्धयस्तथा।

सर्वमेव तमोभूतं न प्राज्ञायत किञ्चन।।

तदैको हि महाकालो लोकानुग्रहकारणात्।

तस्थौ स्थानान्यशेषाणि काष्ठास्वालोकयन्प्रभु:।।

(प्रलय के समय स्थावर जंगम जगत में जब कुछ भी नहीं था । न अग्नि थी,न वायु था,न सूर्य,न पृथ्वी,न दिशाएं,न नक्षत्र, न प्रकाश,न आकाश, न चन्द्र और न ग्रह ही थे । देव, असुर, गंधर्व, पिशाच, नाग, तथा राक्षसगण भी नहीं थे । सरोवर,पर्वत, नदी एवं समुद्र भी नहीं थे । सब ओर घोर अंधकार था । ऐसे समय में लोकानुग्रह के कारण केवल महाकाल ही विद्यमान थे, जो सभी दिशाओं को देख रहे थे।)

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अन्यतम भूतभावन भगवान महाकाल विराजित होने के साथ-साथ अवंतिका तीर्थ की कुछ ऐसी विशिष्टताएं हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं.

स्कंदपुराण के अनुसार

महाकाल वन में(स्कंद पुराण में चार कोस में फैले तीर्थ क्षेत्र को “महाकाल वन” कहा गया है.) संचित पाप-पातक क्षीण हो जाते हैं, इसलिए इसे “क्षेत्र”कहा गया है. मातृदेवियों का स्थान होने के कारण ‘‘पीठ‘‘ कहा गया है. यहां जिनकी मृत्यु होती है, वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है,इसलिए इसे “ऊसर” कहा गया है. देवाधिदेव महाकाल को यह क्षेत्र अतिप्रिय है, इसलिए इसे “श्मशान” और विमुक्ति क्षेत्र भी कहा गया है.

श्मशान,ऊषर,क्षेत्र,पीठ और वन यह पांच वैशिष्ट्य केवल उज्जयिनी तीर्थ में ही पाये जाते हैं,भारत के किसी अन्य तीर्थ क्षेत्र में नहीं. यही कारण है कि अवंतिका में शैव उपासना स्थलों के साथ-साथ वैष्णव,शाक्त,नाथ,तांत्रिक,मांत्रिक,बौद्ध,जैन आदि सभी संप्रदाय खूब फले-फूले.

उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार

ईसा पूर्व छठी सदी में उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत द्वारा मंदिर की व्यवस्था के लिए अपने पुत्र को नियुक्त करने की जानकारी मिलती है.11 वीं 12 वीं सदी में उदयादित्य एवं नर वर्मा के शासनकाल में महाकाल मंदिर का पुनः निर्माण हुआ.1325 में इल्तुतमिश ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया लेकिन वह महाकाल मंदिर के धार्मिक महत्व और लोगों की आस्था को खंडित नहीं कर सका. वर्तमान मंदिर मराठा कालीन है.

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महाकाल मंदिर परिसर कदाचित सर्वाधिक विस्तृत है. परिसर में 40 से अधिक ऐसे छोटे-बड़े मंदिर हैं जो पुराण काल से लगाकर 300- 400 वर्ष पहले तक के हैं. इनमें प्रमुख हैं ओंकारेश्वर महादेव,नागचंद्रेश्वर महादेव,साक्षी गोपाल,सिद्धदास हनुमान मंदिर, रिद्धि-सिद्धि विनायक,लक्ष्मी नृसिंह मंदिर, श्री राम दरबार,अवंतिका देवी, चंद्रादित्येश्वर,अन्नपूर्णा देवी,वाच्छायन गणपति,स्वप्नेश्वर महादेव,त्रिविष्टिपेश्वर महादेव,बृहस्पतेश्वर महादेव,भद्रकाली मंदिर,नवग्रह मंदिर,नीलकंठेश्वर महादेव,स्वर्णजालेश्वर मंदिर,शनि मंदिर,अनादिकल्पेश्वर महादेव,बाल विजय मस्त हनुमान, वृद्धकालेश्वर महाकाल, सप्त ऋषि मंदिर, कोटि तीर्थ कुंड,कोटेश्वर महादेव,विट्ठल पंढरीनाथ मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, प्रवेश द्वार के गणेश, रिद्धि-सिद्धि विनायक मंदिर, मारुति नंदन मंदिर, दक्षिणी मराठों का मंदिर, गोविंददेश्वर महादेव,सूर्यमुखी हनुमान,लक्ष्मी प्रदाता मोड़ गणेश मंदिर,काशी विश्वनाथ मंदिर आदि प्रमुख हैं.

महाकाल मंदिर के पीछे 11 वीं शताब्दी परमार काल का एक शिलालेख है, जिसमें भूतभावन भगवान महाकाल की प्रशस्ति उत्कीर्ण है|

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मंदिर परिसर साक्षात देवलोक का सा आभास देता है. भस्म आरती से लगाकर शयन आरती तक गूंजते मंत्रों के स्वर, घंटे-घड़ियाल एवं डमरु की मधुर ध्वनि तरंगें इसे और भी दिव्यत्व प्रदान करती हैं. इस दिव्यता को साक्षात दर्शन करके ही महसूस किया जा सकता है. महाकाल के दिव्य दर्शन की लालसा लेकर आने वाले लाखों श्रद्धालु अब परिसर की भव्यता का भी साक्षात्कार कर सकेंगे.श्रद्धालुओं को महाकाल के दर्शन आसानी से हो सकें साथ ही उन्हें विभिन्न पौराणिक आख्यानों की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध हो,इसके लिए मंदिर के आस-पास लगभग 20 एकड़ क्षेत्र को सजाया-संवारा गया ह |.

आम श्रद्धालुओं के साथ-साथ विद्वत जनों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद परिसर को नाम दिया गया है- ” महाकाल लोक“.

नव विकसित महाकाल लोक, परंपरागत एवं आधुनिक कला के समन्वय का अद्भुत नजारा प्रस्तुत कर रहा है. लगभग 720 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किए गए महाकाल लोक के प्रथम चरण में शिव कथाओं पर आधारित 190 छोटी-बड़ी मूर्तियां, शिव जी की नृत्य मुद्राओं से सज्जित 108 स्तंभ, 900 मीटर लंबा कॉरिडोर, दीवारों पर उकेरे गए पौराणिक कथाओं पर आधारित आकर्षक भित्ति चित्र एवं विद्युत साज-सज्जा इतनी आकर्षक बन पड़ी है कि आप घंटों अपलक निहार सकते हैं |

महाकाल लोक पहुंचने के लिये चार भुजाओं वाले महाकाल ओवर ब्रिज से होकर त्रिवेणी संग्रहालय जाना होगा। संग्रहालय के ठीक सामने लगभग 450 वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था की गई है। पार्किंग शेड के ऊपर सोलर पैनल लगाये गये हैं।यह उल्लेखनीय है कि महाकाल लोक को जगमग करने में जितनी बिजली खर्च होगी उसकी 90 प्रतिशत बिजली इन्हीं सोलर पैनलों से पैदा होगी.

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पार्किंग के ठीक सामने पिनाक द्वार है और उसके समीप स्थित है त्रिवेणी संग्रहालय। महाकाल लोक में प्रवेश करने के लिए नन्दी द्वार बनाया गया है। द्वार के बाहरी हिस्से में भगवान गणेश के दर्शन होते हैं। प्रवेश द्वार पर नन्दी की विशाल प्रतिमा बनाई गई है। महाकाल लोक के दाहिनी तरफ कमल ताल, शिव स्तंभ, सप्तऋषि परिसर, पब्लिक प्लाजा और नवग्रह परिसर बनाये गये हैं। यहां पर बैठक व्यवस्था भी की गई है। पास में ही कमल ताल है, जहां 25 फीट ऊंची शिव की आकर्षक प्रतिमा स्थापित की गई है।

पौराणिक रूद्र सागर में बरसों बाद जलतरंगें हिलोर मार रही हैं.

परिसर में जितनी भी मूर्तियां एवं भित्ति चित्र प्रदर्शित किए गए हैं उन सबसे सम्बन्धित कथाएं भी अंकित की गई हैं। क्यूआर कोर्ड बनाये गये हैं, जिन्हें मोबाइल से स्केन कर कथा सुनी जा सकती है।

शिव बारात का आकर्षक मूर्ति शिल्प, शिव परिवार सहित कैलाश पर्वत को उठाए हुए रावण की मूर्ति,देवी की नृत्य मुद्रा, सप्तऋषियों की विशाल प्रतिमाएं, त्रिपुरासुर दानव का वध करते हुए रथ पर सवार भगवान शिव की मूर्ति, समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल का पान करते महादेव की मूर्तियां चित्ताकर्षक बन पड़ी है.

महाकाल लोक दो हिस्सों में बना है.एक तरफ पैदल पथ और दूसरी तरफ ईकार्ट पथ।.बच्चे, वृद्ध,दिव्यांग और महिलाओं के लिये ईकार्ट की नि:शुल्क व्यवस्था की गई है। दोनों पथों के बीच निर्मित 108 शिव स्तंभ अलग ही छटा बिखेर रहे हैं। हर स्तंभ पर शिव की नृत्य मुद्रा अंकित है |

महाकाल लोक में शॉपिंग कॉम्पलेक्स भी बनाया गया है

, जहां खाने-पीने की चीजों से लेकर, फूल-प्रसाद एवं धर्म और संस्कृति से जुड़ी विभिन्न वस्तुओं की दुकानें हैं। महाकाल लोक में देश का पहला नाईट गार्डन बनाया गया है, जहां दिन में भी रात्रि का एहसास होता है। गोलाकार नाईट गार्डन के बीच शिव की विशाल ध्यानमग्न प्रतिमा स्थापित की गई है। इसके ठीक सामने के हिस्से में नीलकंठ परिसर है।

पूरे परिसर में आकर्षक विद्युत सज्जा की गई है। रात्रि के समय जब मूर्तियों और म्युरल्स पर रोशनी पड़ती है तो पूरा महाकाल लोक स्वर्णिम आभा से दमकने लगता है।

पौराणिक रुद्रसागर महाकाल लोक का सबसे बड़ा आकर्षण बनने जा रहा है. इसके किनारे पर बने घाटों पर बैठकर श्रद्धालु लाइट एंड साउंड, लेजर और वाटर कर्टन शो का आनंद ले सकेंगे.

अभी तो महाकाल लोक के प्रथम चरण का कार्य ही पूर्ण हुआ है. आप कल्पना करिए,अगले एक-दो वर्षों में जब महाकाल लोक विस्तारीकरण एवं सौंदर्यीकरण पूर्णता प्राप्त करेगा तब नज़ारा ऐसा भव्य होगा…जैसे स्वर्गलोक की दिव्यता और भव्यता एक साथ पृथ्वी पर उतर आई हो.

अब आप जब भी महाकाल दर्शन करने के लिए उज्जैन आएं तो कम से कम 6-8 घंटे का समय लेकर आएं. परिसर की दिव्यता को महसूस करने और भव्यता का साक्षात्कार करने में इतना समय तो लगेगा ही.

अरविन्द श्रीधर

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