व्रत: इस दिन विवाहित महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चंद्रमा दर्शन तक बिना पानी और भोजन के व्रत रखती हैं।
सोलह श्रृंगार: महिलाएँ इस दिन सुंदर पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं, खासकर लाल या नई साड़ी और 16 प्रकार के श्रृंगार करती हैं। यह श्रृंगार सुख-समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
करवा माता की कथा: इस दिन महिलाएँ करवा माता की कथा सुनती हैं, जो इस व्रत के महत्व को बताती है। इस कथा के माध्यम से इस व्रत की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का बोध होता है।
चंद्रमा की पूजा: रात को चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएँ छलनी से चंद्रमा का दर्शन करती हैं और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तोड़वाते हैं।
पारिवारिक प्रेम: यह व्रत पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत करता है। यह प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
आध्यात्मिक आस्था: करवा चौथ महिलाओं की आस्था और धैर्य का भी प्रतीक है। इसे भारतीय संस्कृति में महिला के समर्पण और अपने परिवार के प्रति उनके कर्तव्यों को सम्मानित करने का एक अवसर माना जाता है।
सामूहिकता: करवा चौथ एक सामूहिक त्योहार भी है, जिसमें सभी महिलाएँ एक साथ मिलकर व्रत करती हैं और एक-दूसरे के साथ त्योहार का आनंद उठाती हैं।