अंधी तथा विवेकहीन आस्था भी महापाप हें,सेवा , सुचरित्र , सत्य , ईमान , सुकर्मतथा जीवत्व के प्रति समरसता ही सच्ची आस्था होती हें , वह ही सच्ची ईश भक्ति होती हें