हिंदी दिवस और हिंदी की दुर्दशा: चिंतन और सुधार की आवश्यकता

(रघुवीर सिंह पंवार ) हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन हिंदी को उसकी मान्यता का जश्न मनाने का अवसर मिलता है, लेकिन हिंदी की वास्तविक स्थिति पर नजर डालें, तो जश्न के साथ-साथ हमें चिंता भी करनी चाहिए। जिस भाषा ने हमारे देश की आजादी की लड़ाई में एकता और स्वाभिमान का संचार किया, वह आज खुद अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

हिंदी की वर्तमान स्थिति:

आज के समय में हिंदी का स्थान अपनी मातृभूमि में ही कमजोर होता दिख रहा है। अंग्रेजी का प्रभाव हर क्षेत्र में इतना बढ़ गया है कि हिंदी को “दूसरी भाषा” के रूप में देखा जाने लगा है। शिक्षा से लेकर रोजगार तक, अंग्रेजी का प्रभुत्व है। स्कूलों और कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम को श्रेष्ठ माना जाता है, जिससे बच्चों के मन में यह धारणा बन जाती है कि हिंदी का महत्व सीमित है। यहां तक कि सरकारी नौकरियों और निजी कंपनियों में भी अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग भी अंग्रेजी को अपने जीवन की सफलता का साधन मानने लगे हैं।

शिक्षा में हिंदी की उपेक्षा:

शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की स्थिति बेहद चिंताजनक है। प्राथमिक विद्यालयों में जहां हिंदी की जड़ें मजबूत होनी चाहिए थीं, वहीं अब अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जा रही है। माता-पिता भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भेजने पर जोर देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि हिंदी में शिक्षा लेने से उनके बच्चों का भविष्य सीमित हो जाएगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि में हिंदी का उपयोग बेहद कम हो गया है, जिससे हिंदी भाषी छात्र खुद को अंग्रेजी के सामने कमजोर महसूस करते हैं।

सरकारी संस्थानों में हिंदी की अनदेखी:

हालांकि संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, फिर भी सरकारी संस्थानों और दफ्तरों में हिंदी का उपयोग सीमित होता जा रहा है। सरकारी कार्यालयों में कार्यवाही और संचार के लिए अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि हिंदी का उपयोग सिर्फ औपचारिकताओं तक सीमित रह गया है। कई जगहों पर हिंदी के प्रति सम्मान की जगह इसे केवल एक औपचारिकता मान लिया गया है।

मीडिया और मनोरंजन में हिंदी का पतन:

मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में भी हिंदी की स्थिति में गिरावट आई है। आजकल के टीवी शो, फिल्में और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अंग्रेजी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। बड़े शहरों में रहने वाले लोग हिंदी के बजाय अंग्रेजी में संवाद करना अधिक पसंद करते हैं। यहां तक कि हिंदी फिल्मों के शीर्षक और संवाद भी अंग्रेजी के शब्दों से भरे होते हैं, जिससे हिंदी की शुद्धता और समृद्धि खोती जा रही है।

हिंदी की दुर्दशा के कारण:

  1. अंग्रेजी का अत्यधिक महत्त्व:
    अंग्रेजी को वैश्विक भाषा के रूप में देखा जाता है, और इसके महत्व को देखते हुए लोग इसे सीखना चाहते हैं। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदी को कमतर आंका जाने लगा।
  2. शिक्षा नीति की खामियां:
    हमारी शिक्षा प्रणाली में हिंदी को प्राथमिकता नहीं दी जाती, विशेषकर उच्च शिक्षा में। इसका प्रभाव यह है कि छात्र हिंदी में पढ़ाई को कम उपयोगी समझते हैं।
  3. वैश्वीकरण का प्रभाव:
    ग्लोबलाइजेशन के दौर में अंग्रेजी को सफलता की कुंजी माना गया है, जिससे हिंदी भाषियों के लिए भी अंग्रेजी को अपनाना अनिवार्य सा हो गया है।
  4. सामाजिक दबाव:
    शहरी समाज में अंग्रेजी बोलना स्टेटस सिंबल बन गया है, जिससे हिंदी बोलने वालों को कमतर समझा जाता है। यह मानसिकता हिंदी के पतन का एक बड़ा कारण है।

हिंदी की स्थिति सुधारने के उपाय:

  1. शिक्षा में हिंदी को प्रोत्साहन:
    प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक हिंदी का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए। विज्ञान, गणित, और प्रौद्योगिकी जैसे विषयों में भी हिंदी माध्यम का प्रयोग हो, ताकि छात्रों को अपनी मातृभाषा में ज्ञान अर्जित करने का अवसर मिले।
  2. सरकारी स्तर पर सख्ती:
    सरकारी कार्यालयों और संस्थानों में हिंदी का उपयोग बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। राजभाषा के रूप में हिंदी को लागू करने में किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं होनी चाहिए।
  3. मीडिया में हिंदी का प्रचार:
    टीवी, फिल्म, और डिजिटल मीडिया में हिंदी के शुद्ध और समृद्ध रूप का प्रचार किया जाना चाहिए। मनोरंजन के साथ-साथ हिंदी के साहित्य और कला को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  4. सामाजिक जागरूकता:
    लोगों को यह समझाना आवश्यक है कि हिंदी किसी भी प्रकार से अंग्रेजी से कमतर नहीं है। हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, और हमें इसे गर्व से अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष:

हिंदी दिवस मनाने का वास्तविक अर्थ तभी पूरा होगा जब हम हिंदी के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है। हमें इसे पुनः सम्मानित स्थान पर लाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा। हिंदी की दुर्दशा को दूर करना केवल सरकार का काम नहीं, बल्कि हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है।