किसान की सादगी और समाज की सोच

कविता (रघुवीर सिंह पंवार

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जिसकी ताकत प्याज-लहसुन खाने की नहीं है,
वह मत खाए, कोई जबरदस्ती नहीं है।
पर क्या किसान ने कभी ऐसा किया सवाल?
काजू-बादाम की कभी न ली कोई मिसाल।

साधारण रोटी, प्याज, और नमक है उसका भोजन,
धरती से उपजी फसल ही उसकी रोज़ी और जीवन।
वो किसान, जो पसीने से धरती को सींचता है,
अपने हाथों से अनाज का अमृत बीनता है।

सड़क पर उतरे कभी उसने किया कोई हंगामा?
नहीं, क्योंकि उसके दिल में है सिर्फ कर्म का सम्मान और यश का गाना।
उसके सपनों में महंगे पकवान नहीं,
बस खुशहाली और शांति से भरी उसकी भूमि है कहीं।

कभी नहीं कहा उसने, “मुझे भी काजू-बादाम चाहिए,”
उसने मेहनत से सीखा, “जो मिले, वही सही है।”
उसकी आँखों में चमक है सच्चाई की,
उसके हाथों में ताक़त है सृष्टि की भरपाई की।

क्या जरूरी है हर किसी के लिए महंगे व्यंजन?
किसान जानता है सादगी का असली दर्शन।
धरती पर पसीने की बूँदें,
और फसलें उगाने का संकल्प,
यही है उसकी असली दौलत,
यही है उसका धर्म और संघर्ष।

वो न मांगता है कोई महंगे कपड़े या सोने की थाली,
उसके लिए एक छत, एक रोटी, और परिवार की खुशहाली।
पर समाज उसे क्या देता है, क्या पहचान?
क्या हमने कभी समझा उसके दिल की मुस्कान?

वो चुपचाप सहता है सारे दुख और दर्द,
उसकी आँखों में छिपा है मेहनत का मर्म।
जब हमें प्याज की कीमतें चुभती हैं,
तब भी वो खेतों में फसलें उगाता है, बिना रुके, बिना थमे।

क्या हम समझते हैं उसकी खामोश पुकार?
जो मिट्टी में मिला, वो हमारा उद्धार।
उसके बिना थाली में भोजन नहीं सजता,
पर उसकी मेहनत पर क्यों कोई ध्यान नहीं रखता?

काजू-बादाम की बातें सब करते हैं,
पर किसान का हक क्यों सब भूलते हैं?
उसकी जरूरतें कम हैं, पर दिल बड़ा,
धरती से जुड़ा है उसका हर सपना।

वो नहीं चाहता महंगी चीजें,
नहीं मांगता कोई राजसी वीज़ें।
उसकी दौलत है उसका आत्म-सम्मान,
और मिट्टी से उपजा उसका अभिमान।

किसान की सादगी को समझना सीखो,
उसके संघर्षों से कुछ प्यार का रिश्ता जोड़ो।
उसकी ताकत है उसकी भूमि, उसकी मेहनत,
जिसने हमें दिया जीवन का हर एक बहुमूल्य रत्न।

तो मत भूलो उसकी इस सच्ची कहानी को,
जो हमारे जीवन की असली धानी है।
काजू-बादाम की दौलत नहीं मांगता,
किसान बस अपनी मिट्टी से प्रेम मांगता।

धरती का अन्नदाता, धरती का सपूत,
जिसने सादगी में पाया अपनी ताकत का सबूत।
आज भी उसका पसीना बहता खेतों में,
कल भी उसकी मेहनत खिलेगी हरित अंगारों में।

हमेशा रहे उसकी मेहनत का मान,
न हो कभी उसकी सादगी का अपमान।
क्योंकि किसान ही है जो हमें जीवन देता,
उसकी साधारणता में ही सच्चा सोना मिलता।